मूलभूत कानूनी बातें
परिचय
★★★ इस खंड में हमने साझेदारी, सीमित देयता साझेदारी तथा भारतीय संविदा अधिनियम का समावेश किया है। यहां दी गई जानकारी शुरूआती परिचय के रूप में हैं। कृपया नोट करें कि यहाँ दी गई जानकारी को किसी भी रूप में पूर्ण न समझा जाए औऱ यह बहुत आवश्यक है कि आप आगे बढने से पहले अपने कानूनी सलाहकार से परामर्श लें। साझेदारी, सीमित देयता साझेदारी तथा संविदाओं पर जानकारी हासिल करने के लिए कृपया इसे पढ़ना जारी रखें।
संविदाएं
★★★ संविदाएं क्या होती हैं और संविदा की मूलभूत बातों को जानना आपके लिए क्यों जरूरी है?
★★★ उद्यमी के रूप में आपको निम्नलिखित में से कोई भी गतिविधि करते समय संविदा करनी होगी:
1. संपत्ति की खरीद
2. पट्टा करार करना
3. वस्तुओं अथवा सेवाओं की खरीद
4. संयुक्त उपक्रम शुरू करना
5. परामर्शदाता / स्वतंत्र प्रोफेशनल के रूप में सेवा देना
6. एजेन्ट क सेवा देना
संविदा के महत्त्वपूर्ण खंडों की जाँच सूची
1. संविदा पर हस्तार होने और संविदा के लागू होने की तारीख
2. संविदा के पक्षकारों की परिभाषा
3. संविदा का सीमा-क्षेत्र
4. विवाचन
5. संविदा की शर्तें
6. भौगोलिक सीमाएं (यदि हों)
7. बहिर्गमन के विकल्प
भारतीय संविदा अधिनियम- बुनियादी विधिक विशेषताएं
★★★ संविदा अधिनियम में सीमाकारी घटक शामिल हैं, जिनके अधीन संविदा क्रियान्वित, निष्पादित की जा सकती हैं और संविदा-भंग का प्रवर्तन किया जा सकता है। इसमें केवल नियमों व विनियमों का ढाँचा दिया गया है, जो संविदा के निर्माण और कार्यनिष्पादन को संचालित करता है। पक्षकारों के अधिकारों और कर्तव्यों तथा करार की शर्तों का निर्मय स्वयं पक्षकारों द्वारा किया जाता है। निष्पादन नहीं होने की अवस्था में कानून करार का प्रवर्तन करता है।
संविदा के अनिवार्य तत्व
★★★ भारतीय संविदा अधिनियम के अनुसार कानून द्वारा प्रवर्तनीय कोई करार संविदा कहलाता है। संविदा अधिनियम में दी गई परिभाषा के अनुसार ‘करार’ शब्द में पारस्परिक क्षतिपूर्ति का होना आवश्यक है।
★★★ प्रस्ताव का अर्थ :
जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से कोई कार्य करने /करने से बचने की सहमति लेने के इरादे से कोई काम करने/ करने से बचने की इच्छा व्यक्त करता है तो कहा जाएगा कि उसने प्रस्ताव किया है (धारा 2(क)। अंग्रेजी कानून ‘ऑफर’ शब्द इस्तेमाल करता है, जबकि भारतीय कानून ‘प्रस्ताव’। दोनों आपस में अदल-बदलकर इस्तेमाल होते हैं, किन्तु इस्तेमाल किया जानेवाला सही शब्द होगा ‘प्रस्ताव’।
वचन का अर्थ- जिस व्यक्ति को प्रस्ताव दिया गया है वह जब अपनी सहमति व्यक्त करता है तब प्रस्ताव को स्वीकार किया गया माना जाता है। स्वीकार कर लिए जाने के बाद प्रस्ताव वचन बन जाता है। जिस व्यक्ति को प्रस्ताव किया गया है केवल वही प्रस्ताव को स्वीकार कर सकता है।
वचनदाता और वचनग्रहीता – प्रस्ताव करनेवाला वचनदाता और प्रस्ताव स्वीकार करनेवाला व्यक्ति वचनग्रहीता कहा जाता है।
पारस्परिक वचन – जो वचन एक-दूसरे के लिए क्षतिपूर्ति का हिस्सा होते हैं उनको पारस्परिक वचन कहा जाता है।
वचन के लिए क्षतिपूर्ति – ‘करार’ की परिभाषा में ही कहा गया है कि पारस्परिक वचन को एक-दूसरे के लिए क्षतिपूर्ति होना चाहिए। इस प्रकार किसी करार के लिए ‘क्षतिपूर्ति’ का होना आवश्यक है। बिना क्षतिपूर्ति के प्रावधान के वचन ‘करार’ नहीं है और इसलिए स्वाभाविक रूप से वह ‘संविदा’ नहीं है.
वचन की परिभाषा – जब वचनदाता के अनुरोध पर वचनग्रहीता अथवा किसी अन्य व्यक्ति ने कोई कार्य अथवा कार्य से बचने अथवा वादा किया है/ करने से बचा है अथवा करने/ करने से बचने का वादा किया है तब उसे वचन के लिए क्षतिपूर्ति कहा जाता है।
संविदा में निहित कदम
1. प्रस्ताव (वचन) और उसे स्वीकारना
2. दोनों पक्षकारों की मुक्त सहमति
3. करार के लिए पारस्परिक और विधिसम्मत क्षतिपूर्ति
4. उसे कानून के द्वारा प्रवर्तनीय होना चाहिए
5. पक्षकारों को संविदा करने में सक्षम होना चाहिए
6. उद्देश्य विधि सम्मत होना चाहिए
7. निष्पाद की निश्चितता और संभावनाशीलता
8. संविदा अधिनियम के अंतर्गत अथवा किसी अन्य कानून के तहत संविदा को अकृत घोषित न किया गया हो
प्रस्तावों का संप्रेषण, स्वीकरण और प्रतिसंहरण- प्रस्ताव का संप्रेषण/ प्रतिसंहरण/स्वीकरण संविदा की वैधता के निर्णय के लिए महत्त्वपूर्ण है। ‘संप्रेषण’ तभी पूरा होता है, जब दूसरे पक्षकार ने उसे प्राप्त कर लिया हो।
संविदा के आवश्यक घटक (जारी...)
★★★ स्वीकरण अनिवार्यत: निरपेक्षा होना चाहिए – किसी प्रस्ताव को वचन में परिवर्तित करने के लिए स्वीकरण-
★★★ निरपेक्ष और अशर्त होना चाहिए:
1. किसी सामान्य और उचित तरीके से व्यक्त किया जाना चाहिए, जब तक कि प्रस्ताव में यह न बताया गया हो कि उसे कैसे स्वीकार किया जाए
2. सशर्त स्वीकरण अथवा सप्रतिबंध स्वीकरण वस्तुतः स्वीकरण नहीं है
3. वचन, प्रकट अथवा अप्रकट –यदि प्रस्ताव अथवा स्वीकरण शब्दों में किया गया है, तो उसे स्पष्ट माना जाता है। किन्तु यदि प्रस्ताव अथवा स्वीकरण शब्दों से इतर किसी अन्य रूप में किया गया है तब वचन को निहित कहा जाता है।
4. अमान्यकरणीय करार – जो करार पक्षकारों में से किसी एक के विकल्प पर विधि द्वारा प्रवर्तनीय होता है और दूसरे पक्ष के द्वारा नहीं, वह अमान्यकरणीय संविदा होती है। साथ ही वह तब भी अमान्यकरणीय होता है:
5. यदि सहमति दबाव डालकर, अनुपयुक्त प्रभाव से और तथ्यों के गलत प्रस्तुतीकरण से ली गई हो तो वह पीडित पक्ष द्वारा अमान्यकरणीय होती है। दूसरा पक्ष संविदा को समाप्त नहीं कर सकता।.
6. जब किसी संविदा में पारस्परिक वचन होते हैं और संविदा का एक पक्ष दूसरे पक्ष को उसका कर्तव्य पालन करने में बाधा डालता है, तब बाधित पक्ष के विकल्प पर संविदा अमान्यकरणीय हो जाती है।
7. जब किसी संविदा में समय का महत्त्व हो और कोई पक्ष समय पर काम करने में असफल रहे तब अन्य पक्ष की ओर से संविदा अमान्यकरणीय है।
8. अमान्य संविदा – जब कोई संविदा कानून के द्वारा प्रवर्तनीय नहीं रह जाती, तब वह अमान्य हो जाती है।
9. कौन से करार संविदा होते हैं ? संविदा करने में सक्षम पक्षकारों द्वारा विधिमान्य क्षतिपूर्ति और विधिमान्य उद्देश्य के लिए अपनी सहमति से किए गए ऐसे सभी करार संविदा होते हैं जो एतद्द्वारा स्पष्ट रूप से अमान्य न घोषित किए गए हों।
संविदा करने में सक्षम कौन होते हैं? अपने ऊपर लागू कानून के अनुसार प्रत्येक वयस्क व्यक्ति जो स्वस्थ मस्तिष्क वाला हो और जो अपने ऊपर लागू कानून के ज़रिए संविदा करने के लिए अनर्ह न हुआ हो, संविदा करने में सक्षम है।
स्वतंत्र सहमति- दोनों पक्षों की स्वतंत्र रूप से सहमति जरूरी है। दबाव, अनुचित प्रभाव, धोखाधड़ी और गलत बयानी से ली गई सहमति स्वतंत्र सहमति नहीं है।
अमान्यीकृत करार – जिन करारों को विधि द्वारा प्रवर्तित न किया जा सके, वे अमान्यीकृत समझे जाते हैं।
जब किसी करार को अमान्य पाया जाता है या जब कोई संविदा अमान्य हो जाती है, तब ऐसे करार अथवा संविदा से किसी तरह लाभान्वित हुआ व्यक्ति वह लाभ लौटाने को अथवा जिस व्यक्ति से वह लाभ लिया हो उसे उस लाभ की क्षतिपूर्ति करने को बाध्य होता है।
आनुषंगिक संविदा - किसी संविदा से संबद्ध किसी घटना के होने या न होने के फलस्वरूप किसी कार्य को करने अथवा न करने की संविदा ‘आनुषंगिक संविदा” होती है।
संविदाएँ जो अनिवार्यतः निष्पादित की जानी चाहिए- संविदा के पक्षकारों को तब तक अनिवार्य रूप से या तो अपने-अपने वचन का पालन करना चाहिए या पालन करने के लिए आगे आना चाहिए, जब तक कि अधिनियम अथवा किसी अन्य कानून के प्रावधानों के अंतर्गत ऐसे पालन किए जाने से मुक्ति अथवा छूट न मिली हो। पालन करने से पूर्व वचनदाता की मृत्यु होने पर वचनदाता के प्रतिनिधियों पर वचन-पूर्ति की बाध्यता रहती है, बशर्ते कि संविदा से उसके विपरीत आशय न प्रकट होता हो।
पारस्परिक वचन का अनुपालन – जो वचन एक-दूसरे के लिए क्षतिपूर्ति होते हैं या क्षतिपूर्ति का हिस्सा होते हैं उनको पारस्परिक वचन कहा जाता है।.
संविदाएं जिनका पालन जरूरी नहीं है – यदि कोई संविदा उससे किसी बेहतर संविदा से प्रतिस्थापित कर दी जाती है, तो पुरानी संविदा के पालन की जरूरत नहीं रह जाती।
क्वासी संविदा - ‘क्वासी’ से आशय है ‘लगभग’ या ‘प्रतीत होनेवाला न कि वास्तविक’ अथवा ‘जैसे कि वह हो’। इस शब्द का इस्तेमाल तब होता है जब एक विषय कुछ मायनों में दूसरे से मिलता-जुलता है, किन्तु दोनों में कुछ अंदरूनी अंतर होते हैं।
‘क्वासी संविदा’ वस्तुतः ‘संविदा’ नहीं होती। यह एक जिम्मेदारी है जिसे कानून ने किसी करार की अनुपस्थिति में तैयार किया। यह बराबरी पर आधारित है। कुछ ऐसे संबंध हैं जो संविदा द्वारा निर्मित संबंधों से मिलते-जुलते हैं। इनको ‘क्वासी संविदाएं’ कहते हैं। ये इस प्रकार हैं-
(a) आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति (धारा 68)
(b) हितबद्ध व्यक्ति द्वारा विधिसम्मत देयताओं का भुगतान (धारा 69)
(c) किसी निःशुल्क सुविधा का लाभ ले रहा व्यक्ति (धारा 70)
(d) सामान पानेवाला (धारा 71)
(e) जिसे गलती से अथवा दबाव में कोई वस्तु या अन्य कुछ मिला हो (धारा 72).
संविदा भंग के परिणाम
★★★ संविदा भंग के लिए हर्जाना देय होता है। यदि संविदा में प्रावधान हो तो दंड भी देय होता है। संविदा भंग वास्तविक अथवा आनुमानिक हो सकता है।
क्षतिपूर्ति और हर्जाना के सिद्धान्त की सारांश – निम्नलिखित बिन्दु महत्त्वपूर्ण हैं-
1. हानि अथवा क्षति के लिए क्षतिपूर्ति देय होती है। चूंकि इस्तेमाल किया गया शब्द ‘क्षतिपूर्ति’ है इसलिए दंडात्मक हर्जाना का निर्णय नहीं दिया जा सकता।
2. ये सामान्य प्रक्रिया में होने चाहिए या पार्टियों को ज्ञात होने चाहिए यानी दोनों पक्षों को इनकी जानकारी होनी चाहिए।
3. संभावित अथवा अप्रत्यक्ष हानि या क्षति के लिए कोई क्षतिपूर्ति नहीं।
4. यही सिद्धान्त क्वासी संविदा पर भी लागू होते हैं।
सामान्य क्षतिपूर्तियाँ – ये क्षतिपूर्तियाँ संविदा-भंग के ‘प्रत्यक्ष अथवा नजदीकी’ परिणाम-स्वरूप उत्पन्न होती हैं। आम तौर पर जो दिया जा सकता है वह है हानि अथवा क्षति के लिए ऐसी क्षतिपूर्ति जिसे प्रत्यक्ष रूप से या सीधे संविदा भंग के लिए जिम्मेदार माना जा सकता है।
परिणामी हानि या विशेष क्षति – विशेष क्षतियाँ या परिणामी क्षतियाँ विशेष परिस्थितियों की मौजूदगी के कारण उत्पन्न होती हैं। ऐसी क्षतिपूर्ति तभी दी जा सकती है जब संविदा भंग करनेवाला पक्षकार विशेष परिस्थितियों को पहले से देख सकता था अथवा वे उक्त पक्ष को विशेष रूप से ज्ञात थीं।
वचनग्रहीता को हानि अथवा क्षति के शमन के उपाय करने चाहिए – धारा 73 की व्याख्या में विशेष रूप से प्रावधान है कि हानि अथवा क्षतिपूर्ति का अनुमान लगाते समय संविदा भंग के कारण हुई असुविधा के समाधान के लिए उपलब्ध साधनों को ध्यान में रखा जाएगा। इस प्रकार वचनग्रहीता को क्षतियों के समाधान के लिए सभी उचित उपाय करने चाहिए।
प्रतिशोधात्मक अथवा अनुकरणीय क्षतिपूर्तियाँ – संविदा अधिनियम के अंतर्गत प्रतिशोधात्मक अथवा अनुकरणीय क्षतिपूर्तियाँ नहीं दी जा सकतीं। किन्तु विशेष परिस्थितियों में क्षति के अंतर्गत न्यायालय द्वारा इनका आदेश दिया जा सकता है।
मुख्य आयाम
★★★ प्रिन्सिपल के प्रति एजेन्ट के कर्तव्य:
1. प्रिन्सिपल के दिशानिर्देशों के अनुसार व्यवसाय का संचालन
2. सामान्य कौशल और श्रम से कार्य-संपादन
3. खातों का प्रस्तुतीकरण
4. प्रिन्सिपल के साथ पत्र-व्यवहार
5. अपनी और से सौदा नहीं करना
6. प्राप्त राशियों का भुगतान प्रिन्सिपल को करने की कर्तव्यबद्धता
प्रिन्सिपल की मृत्यु अथवा विक्षिप्तता की स्थिति में एजेन्सी का समापन एजेन्ट का कर्तव्य
एजेन्ट का पारिश्रमिक: कोई क्षतिपूर्ति आवश्यक नहीं, किन्तु यदि कोई करार हो तो एजेन्ट को संविदा के अनुसार पारिश्रमिक पाने का अधिकार
★★★ प्रिन्सिपल के अधिकार:
1. निर्देशों का पालन न करने पर एजेन्ट से हर्जाने की वसूली
2. एजेन्ट से लेखा-बही लेना
3. एजेन्ट द्वारा वसूल किए गए धन की वसूली
4. प्रिन्सिपल के कर्तव्य
5. करार के अनुसार पारिश्रमिक का भुगतान
6. एजेन्ट द्वारा किए गए विधिमान्य कार्यों के लिए उसे सुरक्षित रखना
7. एजेन्ट द्वारा किए गए सभी सद्भावी कृत्यों के लिए उसे सुरक्षित रखना
8. एजेन्सी का समापन:
किसी एजेन्सी का समापन प्रिन्सिपल द्वारा अपने प्राधिकार को वापस लेकर अथवा एजेन्ट द्वारा एजेन्सी का व्यवसाय समाप्त करने की घोषणा, अथवा एजेन्सी का कारोबार पूरा होने, अथवा प्रिन्सिपल या एजेन्ट में से किसी एक की मृत्यु होने अथवा दिमागी संतुलन बिगड़ने, अथवा उस समय लागू किसी कानून के प्रावधानों के अंतर्गत दिवालिया देनदारों की राहत के लिए प्रिन्सिपल को दिवालिया घोषित किए जाने (धारा 201) पर किया जाता है।
कुछ परिभाषाएं
★★★ एजेन्ट और प्रिन्सिपल परिभाषित - “एजेन्ट” वह व्यक्ति होता है जिसे किसी अन्य की ओर से कोई काम करने के लिए अथवा किसी तीसरे व्यक्ति से डील करने के लिए प्रतिनिधि के तौर पर नियुक्त किया गया हो। जिस व्यक्ति के लिए यह कार्य किया जाता है, अथवा जिसका प्रतिनिधित्व किया जाता है, उसे “प्रिन्सिपल” कहा जाता है [धारा 182].
एजेन्ट कौन रख सकता है – कोई भी व्यक्ति जो अपने ऊपर लागू कानून के अनुसार वयस्क हो और जिसका मस्तिष्क स्वस्थ हो, एजेन्ट की सेवा ले सकता है [धारा183]. - - इस प्रकार संविदा करने में सक्षम कोई भी व्यक्ति एजेन्ट की नियुक्ति कर सकता है।
कौन एजेन्ट हो सकता है – जैसाकि प्रिन्सिपल और किसी तीसरे व्यक्ति के बीच होता है, कोई व्यक्ति एजेन्ट हो सकता है, किन्तु ऐसा व्यक्ति नहीं जो अल्पवयस्क हो और स्वस्थ मस्तिष्क वाला न हो। वह यहाँ उल्लिखित (धारा 184) में विहित प्रावधानों के अनुसार अपने प्रिन्सिपल के प्रति जवाबदेह होता है। - - महत्त्वपूर्ण यह है कि कोई प्रिन्सिपल किसी अल्पवयस्क को अथवा अस्वस्थ मस्तिष्क वाले व्यक्ति को एजेन्ट नियुक्त कर सकता है। ऐसी स्थिति में प्रिन्सिपल तीसरे पक्षकारों के प्रति जिम्मेदार होगा। किन्तु जो एजेन्ट अल्पवयस्क हो अथवा जिसका मस्तिष्क अस्वस्थ हो, वह प्रिन्सिपल के प्रति जिम्मेदार नहीं होगा।
क्षतिपूर्ति आवश्यक नहीं – एजेन्सी निर्मित करने के लिए क्षतिपूर्ति आवश्यक नहीं है। [धारा 185]. इस प्रकार एजेन्ट की नियुक्ति को वैध ठहराने के लिए एजेन्सी कमीशन का भुगतान किया जाना आवश्यक नहीं है।
भारतीय दंड संहिता
★★★ भारतीय समाज को क़ानूनी रूप से व्यवस्थित रखने के लिए सन 1860 में लार्ड मेकाले की अध्यक्षता में भारतीय दंड संहिता (Indian Pinal Code) बनाई गई थी। इस संहिता में विभिन्न अपराधों को सूचीबद्ध कर उस में गिरफ्तारी और सजा का उल्लेख किया गया है। इस में कुल मिला कर 511 धाराएं हैं। कुछ खास धाराएं निम्न हैं -
धारा 13
★★★ जुआ खेलना/सट्टा लगाना 1 वर्ष की सजा और 1000 रूपये जुर्माना
सांप्रदायिक दंगा भड़काने में लिप्त 5 वर्ष की सजा .
सांप्रदायिक दंगा भड़काने में लिप्त 5 वर्ष की सजा .
99 से 106 तक धारा
★★★ व्यक्तिगत प्रतिरक्षा के लिए बल प्रयोग का अधिकार.
धारा 147, 161, 171, 177, 186, 191, 193
धारा 147, 161, 171, 177, 186, 191, 193
धारा 147
★★★ बलवा करना (Rioting) 2 वर्ष की सजा/जुर्माना या दोनों गिरफ्तार/जमानत होगी .
धारा 161
★★★ 161-रिश्वत लेना/देना 3 वर्ष की सजा/जुरमाना या दोनों गिरफ्तार/जमानत नहीं .
धारा 171
★★★ 171-चुनाव में घूस लेना/देना 1 वर्ष की सजा/500 रुपये जुर्माना गिरफ्तार नहीं/जमानत होगी .
धारा 177
★★★177- सरकारी कर्मचारी/पुलिस को गलत सूचना देना 6 माह की सजा/1000 रूपये जुर्माना .
धारा 186
★★★186- सरकारी काम में बाधा पहुँचाना 3 माह की सजा/500 रूपये जुर्माना .
धारा 191
★★★191- झूठी गवाही देना 3/ 7 वर्ष की सजा और जुरमाना .
धारा 193
★★★193- न्यायालयीन प्रकरणों में झूठी गवाही 3/ 7 वर्ष की सजा और जुरमाना.
धारा 216, 224/25, 231/32, 255, 264, 267, 272, 274/75, 279, 292, 294
धारा 216
★★★ लुटेरे/डाकुओं को आश्रय देने के लिए दंड .
धारा 224/25
★★★ विधिपूर्वक अभिरक्षा से छुड़ाना 2 वर्ष की सजा/जुरमाना/दोनों .
धारा 231/32
★★★ जाली सिक्के बनाना 7 वर्ष की सजा और जुर्माना गिरफ्तार/जमानत नहीं .
धारा 255
★★★ सरकारी स्टाम्प का कूटकरण 10 वर्ष या आजीवन कारावास की सजा .
धारा 264
★★★ गलत तौल के बांटों का प्रयोग 1 वर्ष की सजा/जुर्माना या दोनों गिरफ्तार/जमानत होगी .
धारा 267
★★★ औषधि में मिलावट करना 6 महीने की सजा/1000 रूपये जुर्माना /दोनों गिरफ्तार नहीं/जमानत होगी .
धारा 272
★★★ खाने/पीने की चीजों में मिलावट 6 महीने की सजा/1000 रूपये जुर्माना /दोनों गिरफ्तार नहीं/जमानत होगी .
धारा 274 /75
★★★ मिलावट की हुई औषधियां बेचना .
धारा 279
★★★ सड़क पर उतावलेपन/उपेक्षा से वाहन चलाना 6 माह की सजा या 1000 रूपये का जुरमाना .
धारा 292
★★★ अश्लील पुस्तकों का बेचना 2 वर्ष की सजा और 2000 रूपये जुर्माना गिरफ्तार/जमानत होगी .
धारा 294
★★★ किसी धर्म/धार्मिक स्थान का अपमान 2 वर्ष की सजा .
धारा 302, 306, 309, 311, 323, 354, 363, 366, 376, 377, 379, 392, 395
धारा 302
★★★ हत्या/कत्ल (Murder) आजीवन कारावास /मौत की सजा गिरफ्तार/जमानत नहीं .
धारा 306
★★★ आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण 10 वर्ष की सजा और जुरमाना .
धारा 309
★★★ आत्महत्या करने की चेष्टा करना 1 वर्ष की सजा/जुरमाना/दोनों गिरफ्तार/जमानत .
धारा 311
★★★ ठगी करना आजीवन कारावास और जुरमाना गिरफ्तार/जमानत नहीं .
धारा 323
★★★ जानबूझ कर चोट पहुँचाना .
धारा 354
★★★ किसी स्त्री का शील भंग करना 2 वर्ष का कारावास/जुरमाना/दोनों गिरफ्तार/जमानत .
धारा 363
★★★ किसी स्त्री को ले भागना(Kidnapping) 7 वर्ष का कारावास और जुरमाना गिरफ्तार/जमानत .
धारा 366
★★★ नाबालिग लड़की को ले भागना .
धारा 376
★★★ बलात्कार करना (Rape) 10 वर्ष/आजीवन कारावास गिरफ्तार नहीं /जमानत होगी .
धारा 377
★★★ अप्राकृतिक कृत्य अपराध (Un natural offence) 5 वर्ष की सजा और जुरमाना गिरफ्तार/जमानत नहीं .
धारा 379
★★★ चोरी (सम्पत्ति) करना 3 वर्ष का कारावास /जुरमाना/दोनों गिरफ्तार/जमानत .
धारा 392
★★★ लूट करना 10 वर्ष की सजा .
धारा 395
★★★ डकैती (Decoity) 10 वर्ष या आजीवन कारावास गिरफ्तार नहीं/जमानत .
धारा 417, 420, 426, 446, 463, 489, 493, 494, 497, 498/अ, 500, 509
धारा 417
★★★ छल/दगा करना (Cheating) 1 वर्ष की सजा/जुरमाना/दोनों गिरफ्तार नहीं/जमानत होगी .
धारा 420
★★★ छल/बेईमानी से सम्पत्ति अर्जित करना 7 वर्ष की सजा और जुरमाना .
धारा 426
★★★ किसी से शरारत करना (Mischief) 3 माह की सजा/जुरमाना/दोनों .
धारा 446
★★★ रात में नकबजनी करना .
धारा 463
★★★ कूट-रचना/जालसाजी .
धारा 489
★★★ जाली नोट बनाना/चलाना 10 वर्ष की सजा/आजीवन कारावास गिरफ्तार/जमानत नहीं .
धारा 493
★★★ स्त्री से व्यभिचार करना 10 वर्षों की सजा .
धारा 494
★★★ पति/पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी करना 7 वर्ष की सजा और जुरमाना गिरफ्तार नहीं/जमानत होगी .
धारा 497
★★★ जार कर्म करना (Adultery) 5 वर्ष की सजा और जुरमाना .
धारा 498/अ
★★★ अपनी स्त्री पर अत्याचार - 3 वर्ष तक की कठोर सजा .
धारा 500
★★★ मान हानि 2 वर्ष की सजा और जुरमाना .
धारा 509
★★★ स्त्री को अपशब्द कहना /अंगविक्षेप करना सादा कारावास या जुरमाना .